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कहूं या नहीं

अपने हक से वंचित हूं मैं अपने घर से दंडित हूं मैं  बिखरा बिखरा खंडित हूं मैं   और कोई नहीं कश्मीरी पंडित हूं मैं

गहरे घावो से मूर्छित हूं मैं  पल पल मर कर जीवित हूं मैं  अपनो के व्यवहार से विस्मित हूं मैं भूल गई जिसे दुनिया वह अतीत हूं मैं और कोई नहीं कश्मीरी पंडित हूं में

रुदन विलाप का संगीत हूं मैं  तुम सबके मोन का गीत हूं मैं  तुम सब के अभाव से व्यथित हूं मैं व्यवस्थित दुनिया में अव्यवस्थित हूं मैं और कोई नहीं कश्मीरी पंडित हूं मैं

पूरी दुनिया में चर्चित हूं मैं अतीत की तारीख में वर्णित हूं मैं अन्याय हिंसा से शोषित हूं मैं अधर्म के कारण पीड़ित हूं मैं  और कोई नहीं कश्मीरी पंडित हूं मैं

शांति अपनाकर लज्जित हूं मैं तुम सब के भविष्य का चित्त हूं मैं तुम सब के लिए भी चिंतित हूं मैं मानो या ना मानो तुम सबका हित हूं मैं और कोई नहीं कश्मीरी पंडित हूं मैं

अपाहिज राजनीति का चित्र हूं मैं तुम सब के भविष्य का इत्र हूं मैं  आने वाले कल का निश्चित हूं मैं तुम सब का सच्चा मित्र हूं मैं और कोई नहीं कश्मीरी पंडित हूं मैं

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5 Comments

Rupesh Kumar

21-Jan-2024 05:41 PM

Nice one

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Gunjan Kamal

18-Jan-2024 03:11 PM

👏👌

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Alka jain

17-Jan-2024 05:56 PM

Nice

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